https://www.makeinmeezon.com/2020/02/blog-post.html
श्री.बालठाकरे



                          "मातोश्री" हाँ मैं महाराष्ट्र स्थित मुंबई के मातोश्री की ही बात कर रहा हूँ। भारतीय राजनीति में पहले के दौर में जैसे दिल्ली स्थित 10 जनपथ की अपनी ही शान कुछ निराली थी, उसी तरह महाराष्ट्र की राजनीति में "मातोश्री" का अपना ही बहुत बड़ा महत्त्व होता था।

                        महाराष्ट्र में किसी भी पार्टी का मुख्यमंत्री हो वह एकबार तो "मातोश्री" में अपनी हाजरी लगा आता। इसका कारण भी वैसे ही था मातोश्री का सीधे सम्बन्ध मुंबई तथा महाराष्ट्र की राजनीती से था। हाँ, इसी मातोश्री में हिन्दू ह्रदय सम्राट श्री। बाला साहब ठाकरेजी रहते थे।

                    श्री. बाल ठाकरेजी का मुंबई पर इतना प्रभाव था कि उनके एक इशारे पर मुंबई में चक्का जाम हो जाता। मराठी माणूस के दिलों पर राज करने वाले श्री. ठाकरे बिहारियों और दक्षिण भारतीयों के विरोधी थे। उनका मानना था कि उन लोगों के कारण स्थानीय लोगों को रोजगार से वंचित होना पड़ता है। इसके आलावा वे कट्टर हिन्दू वादी थे इसी के चलते उन्होंने कभी भी कांग्रेस का समर्थन नहीं किया।
                   परन्तु 28 नवम्बर 2019 को उनके पुत्र श्री. उद्धव ठाकरे ने अपने पिता एवं ह्रदय सम्राट श्री. बाला साहबजी के स्वप्नों उनके आदर्शों को अपने स्वार्थ के पैरों तले रोंदते हुए एन. सी. पी. और कांग्रेस पार्टी का दामन थाम कर महाराष्ट्र के 19 वे मुख्यमंत्री बन गए। अपने पुत्र मोह में अपने पार्टी की विचारधारा को तिलांजलि दे दी। यहीं से मातोश्री की शान पर ग्रहण लग गया। 

बाला साहेब का जन्म 

                 श्री.बाला साहेबजी का जन्म पुणे में एक चांद्र सेनिय कायस्थ [सी के. पी.] परिवार में 23 जनवरी 1926 को एक प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्त्ता, लेखक और जातिप्रथा के विरोधी श्री. केशव सीताराम ठाकरेजी के यहाँ हुआ था।

             उनके पिता केशव सीताराम ठाकरेजी ने महाराष्ट्र के मराठी भाषी लोगों को संगठित करने हेतु संयुक्त मराठी आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके आलावा सं. 1950 में मुंबई को महाराष्ट्र की राजधानी बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया था। 
         श्री. बाल ठाकरेजी के मन में दक्षिण भारतीयों के प्रति रोष क्यों था? इसका वर्णन श्री। केशव ठाकरेजी ने अपनी आत्मकथा "माझी जीवनगाथा" में किया है। लोग श्री। केशवजी को लेखनी के कारण उनके उपनाम प्रबोधनकार ठाकरे के नाम से ही अधिक जानते थे।

      "माझी जीवन गाथा" के अनुसार ठाकरे परिवार मुंबई के दादर स्थित मिरांडा चाल में रहता था। इस चाल में कॉमन बाथरूम को लेकर प्रतिदिन झगड़ा होता रहता था। दक्षिण भारतीय लोग नहाने से पहले तेल लगाते थे। इस कारण श्री। केशवजी को लगता था कि उनके नहाने के पश्चात बाथरूम में जानेवाले, दूसरे लोग फिसल सकते है। उनके पडोसी केशवजी की बातों को अनसुना कर देते। इन लोगों को सबक सिखाने ठाकरे परिवार अपने घर के आगे मीट के टुकड़े रखने लगे, जिस कारण उनके शाकाहारी पडोसी नाराज होने लगे। बस! ऐसी ही घटनाओ से श्री. बाल ठाकरेजी के मन में दक्षिण भारतीयों के प्रति रोष उत्पन्न हो गया। 

प्रारंभिक जीवन     

         श्री. बाल ठाकरेजी ने अपना वास्तविक जीवन का सफर एक कार्टूनिस्ट के रूप में आरम्भ किया था। उन्होंने अपने कार्टूनिस्ट जीवन की यात्रा फ्री प्रेस जर्नल से आरम्भ की। 

https://www.makeinmeezon.com/2020/02/blog-post.html


https://www.makeinmeezon.com/2020/02/blog-post.html



https://www.makeinmeezon.com/2020/02/blog-post.html

श्री बाला साहेब के लोकप्रिय कार्टून 

          कुछ समय तक फ्री प्रेस जर्नल में कार्य करने के पश्चात अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और सं.1960 में अपने भाई के साथ एक कार्टून साप्ताहिक "मार्मिक" का श्री गणेश किया।
         उन्होंने "मार्मिक" में पढ़ो और बढ़ो " शीर्षक के अंतर्गत मुंबई में सरकारी नौकरियों पर बाहरी यानी दक्षिण भारतीयों का कब्जे की जानकारी छापने लगे। धीरे-धीरे ये बात बेरोजगार मराठी युवाओं का खून खौलाने लगी।
      आख़िरकार 19 जून 1966 को सुबह साढ़े नौ बजे एक नारियल फोड़कर केवल अठारह लोगों की उपस्तिथि में पार्टी की स्थापना की। श्री. प्रबोधन ठाकरेजी ने इस पार्टी का नामकरण "शिव सेना" नाम से किया। उस दौर में शिव सेना का 'बजाओ पुंगी, उठाव लुंगी' का नारा काफी बुलंद था।

          शिव सेना की स्थापना के महज चार महीने बाद ही श्री.ठाकरेजी ने मार्मिक के जरिये ' शिव सेना की पहली रैली दशहरे के अवसर पर शिवाजी पार्क में करने की घोषणा कर दी। सं। 1966 में हुई इस पहली रैली में इतने लोग जुटे की शिवाजी पार्क का मैदान भी कम पड़ गया।

          इस रैली में मराठी युवा इतने जोश से लबरेज हो गए की शिवाजी पार्क मैदान से निकलकर माटुंगा में दक्षिण भारतीयों की दुकानों के साथ तोड़-फोड़ की। इसी परंपरा का सिलसिला बाला साहेब की रैलीयों में नजर आता रहा।

           श्री. बाला साहेब ठाकरे के दौर में जितना "मातोश्री" को महत्त्व था उतना महत्त्व मुख्यमंत्री के बंगले "वर्षा" को भी नहीं था। परन्तु जब से उनके पुत्र श्री। उद्धव ठाकरेजी ने कॉग्रेस का दामन थमा है तब से मातोश्री आम बंगलों की कतार में समा गया है।