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श्री. मोरारजी देसाईजी

                 सं. 1977 के वर्ष की यादों में झांकते है तो अनायास ही भारत के स्वधीनता सेनानी और देश के चौथे प्रधानमंत्री श्री. मोरारजी देसाईजी का तेजस्वी व्यक्तित्व आँखों के सामने उभरकर आता है। वे ही भारत के ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री थे जो भारतीय कांग्रेस के बजाय अन्य पार्टी से थे। श्री. मोरारजी देसाईजी को भारत का सर्वाच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया है, यही नहीं हमारे पडोसी देश पाकिस्तान ने उनका सर्वाच्च सम्मान 'निशान-ए-पाकिस्तान' से सम्मानित किया गया था।
उनका जन्म :-

             श्री. मोरारजी देसाईजी का जन्म गुजरात के भदेली नामक स्थान पर एक ब्राम्हण स्कूल अध्यापक श्री. रणछोडजी देसाईजी के घर 29 फरवरी 1896 को हुआ था। उनके पिता श्री. रणछोड़जी सदा निराशा एवं खिन्नता से ग्रस्त रहते थे। एक दिन उन्होंने कुएँ में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर दी। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन ही श्री. मोरारजी का विवाह सं. 1911 में गुजराबेन के साथ हुआ था। 

शिक्षा - दिक्षा  : -
           
               श्री.मोरारजी देसाईजी की शिक्षा महाराष्ट्र के मुंबई स्थित एल्फिस्टन कॉलेज में हुई थी। उस दौर में इस कॉलेज में पढ़ना काफी महंगा और खर्चीला माना जाता था। वे गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध एक निःशुल्क आवास गृह में रह कर पढाई करते थे।
           उस निःशुल्क आवास गृह में केवल चालीस शिक्षार्थी रह सकते थे। वैसे अपने विद्यार्थी जीवन में श्री. मोरारजी औसत बुद्धि के एक विवेकशील छात्र थे। उनके विवेकशील स्वभाव के कारण उन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था, परन्तु श्री. मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया होगा।
         उन्होंने अपने कॉलेज के जीवन में ही महात्मा गाँधी, श्री.बाल गंगाधर तिलकजी और अन्य कांग्रेसी नेताओं के भाषणों को सुना था। उस समय की सरकार द्वारा मुंबई प्रोविंशियल सिविल सर्विस में सीधी भर्ती की जाती थी। श्री. मोरारजी देसाई ने इसके लिए आवेदन करने का मन बना लिया। इसके परिणाम स्वरुप उन्हें जुलाई 1917 में यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में प्रविष्टि मिल गई। 
              यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में श्री.मोरारजी को ब्रिटिश व्यक्तियों की भांति समान अधिकार एवं सुविधाएँ प्राप्त होती थी। यहीं से उन्होंने एक अफसर की जीवन यात्रा आरम्भ कर दी। इसी के अंतर्गत मई 1918 में वे उप-जिलाधीश के रूप में अहमदाबाद पहुंचे, जहाँ पर चैटफील्ड नामक ब्रिटिश कलेक्टर के अधीन कार्य किया। श्री.मोरारजी देसाई अपने रूखे स्वभाव के कारण कई वर्षों तक उन्नति नहीं कर पाए।
             सं.1930 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और फिर स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बन गए। अगले वर्ष ही वे गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सचिव बन गए। श्री.देसाईजी ने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित कर दी। सं। 1937 तक वे गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सचिव भी रहे। जब वे बम्बई राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में शामिल हुए तब उनके व्यक्तित्व में जटिलतायें होने का आभास हो गया था।
            श्री.मोरारजी को लोग व्यंग से 'सर्वाच्च नेता' कहा करते थे। इसका कारण वे अपनी बात को ऊपर रखते थे और उसी बात को सही मानते थे। गुजरात के समाचार पत्रों में उस दौरान प्रायः श्री. देसाईजी के व्यक्तितत्व को लेकर व्यंग भी प्रकाशित होते थे। इन चित्रों में उन्हें गाँधी टोपी भी पहने हुए दिखाया जाता था। इन चित्रों में व्यंग यह होता था कि वे गांधीजी के व्यक्तित्व से प्रभावित है परन्तु अपनी ही बात पर अड़े रहनेवाले एक जिद्दी व्यक्ति दर्शाया जाता।
          देश की आजादी के समय राष्ट्रिय राजनीति में श्री.मोरारजी का नाम वजनदार हो चूका था। लेकिन उनकी रूचि राज्य की राजनीती में अधिक थी। इस समय तक गुजरात और महाराष्ट्र बम्बई प्रोविंस के नाम से जाने जाते थे। सं। 1952 में श्री. मोरारजी को बम्बई का मुख्यमंत्री बनाया गया था। उन्हें पहले नेहरू कैबिनेट में स्थान मिला था। सं. 1967 में इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री बनाया गया। श्री.मोरारजी इस बात को लेकर कुंठित थे कि वे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता होने के बावजूद इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया गया है।
          सं.1969 में श्री.मोरारजी देसाईजी ने इंदिरा गाँधी और कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध जाते हुए अपना इस्तीफा दे दिया। जब सं. 1975 में इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगाया था, उस समय उन्हें राजनितिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण गिरफ्तार कर सं. 1977 तक जेल में रखा गया था।
          श्री. मोरारजी देसाईजी ऐसे प्रधानमंत्री हुए वे "यूरिन थेरेपी" को काफी महत्त्व देते थे। सं.1977 में जब लोकसभा के चुनाव संपन्न हुए उस चुनाव में जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला। श्री. देसाईजी की प्रार्थमिकताओं में प्रधानमंत्री बनना शामिल था परन्तु जनता पार्टी में भी उनको दो अन्य दावेदार श्री. जगजीवन राम और श्री. चौधरी चरण सिंह का मुकाबला करना पड़ा परन्तु एक जमाने के कांग्रेसी श्री.जयप्रकाश नारायणजी ने उस दौर में किंग मेकर की भूमिका निभाते हुए श्री. मोरारजी के पक्ष में प्रधानमंत्री की गेंद दाल दी।
          अपनी आयु के एकास्सी वर्ष में 23 मार्च 1977 को भारतीय प्रधानमंत्री का दाइत्व ग्रहण किया। ऐसे महान भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने केवल दो वर्षों तक प्रधानमंत्री का दायित्व निभाया कारण श्री.चौधरी चरण सिंह ने अपना समर्थन वापिस लेने से उनकी सरकार गिर गई। श्री. मोरारजी देसाईजी ने 10 अप्रैल 1995 को इस दुनिया से अलविदा कर दिया।