गतांक से आगे -----------------
मौलवी के आग्रह पर माला को भी रेहाना के साथ एक ओर बिठाया। आपा ने भाई के दर्शन करते ही नुरुल के शव को अन्य धार्मिक कार्य करने वहां से उठाया गया। माला उस मातम भरे वातावरण में नुरुल की यादों को सिमटे समय के दर्पण में झांकने लगी।
अनोखा रिश्ता भाग - २
[ अब आगे ] --
मौलवी के आग्रह पर माला को भी रेहाना के साथ एक ओर बिठाया। आपा ने भाई के दर्शन करते ही नुरुल के शव को अन्य धार्मिक कार्य करने वहां से उठाया गया। माला उस मातम भरे वातावरण में नुरुल की यादों को सिमटे समय के दर्पण में झांकने लगी।
अनोखा रिश्ता भाग - २
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माला को याद आई वह घटना जो आज से तीस -पैंतीस वर्ष पूर्व हुई थी और नुरुल जैसे महान व्यक्ति से संपर्क बना था।
उन दिनों हैदराबाद में रजाकार लोगों की ज्यादतियां होने के कारण हिन्दू - महिलाएं घर के बाहर जाने से कतराती थी। माला के पति हैदराबाद पुलिस विभाग में कार्यरत थे। उनकी ड्यूटी ही पहली प्रार्थमिकता थी। परिवार और घर उनकी नज़रों में दुय्यम था। काम से लौटने के बाद नुक्कड़ पर स्थित नुरुल की दुकान पर ही अक्सर बैठ जाते। हमेशा की तरह माला के पति अपनी ड्यूटी निभाने सवेरे ही घर से निकल पड़े थे। माला का पुत्र रोहित डायरिया से बीमार था। वह दो - तीन वर्ष का ही था। वहीँ माला इस परदेवाले शहर में अनजान थी। रोहित को तत्काल अस्पताल ले जाने की आवश्यकता थी। उसे अकेली ही ले जाना असंभव था। फिर किसे बुलाया जाय , इसी सोच की उधेड़बुन में उसने साहस कर नुरुल की दुकान पर एक लडके को सूचना देकर भेजा। उसे लगा हो सकता है पति वहां पहुंचे होंगे।
पति के आने के बजाय नुरुल ही दौड़ता हुआ आया। उसने आते ही पूछा -- '' आपा क्या बात है , क्या हुआ ? '' माला ने उस मुस्लमान व्यक्ति पर विश्वास करना चाहिए या नहीं इसी कश्मकश में कहा - '' नुरुल भाई , रोहित की तबियत एकदम ख़राब हो गई है। उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना है। मेरे पास पैसे भी नहीं है और साथ भी चलने कोई नहीं। '' नुरुल - '' बस ! इतनी सी बात , आपा तुम्हारा भाई है न। आप तैयार रहना मै अभी साइकिल रिक्शा भेजता हूँ। ''इतना कहकर वह अपनी दुकान को लौट गया।
उन दिनों हैदराबाद में रजाकार लोगों की ज्यादतियां होने के कारण हिन्दू - महिलाएं घर के बाहर जाने से कतराती थी। माला के पति हैदराबाद पुलिस विभाग में कार्यरत थे। उनकी ड्यूटी ही पहली प्रार्थमिकता थी। परिवार और घर उनकी नज़रों में दुय्यम था। काम से लौटने के बाद नुक्कड़ पर स्थित नुरुल की दुकान पर ही अक्सर बैठ जाते। हमेशा की तरह माला के पति अपनी ड्यूटी निभाने सवेरे ही घर से निकल पड़े थे। माला का पुत्र रोहित डायरिया से बीमार था। वह दो - तीन वर्ष का ही था। वहीँ माला इस परदेवाले शहर में अनजान थी। रोहित को तत्काल अस्पताल ले जाने की आवश्यकता थी। उसे अकेली ही ले जाना असंभव था। फिर किसे बुलाया जाय , इसी सोच की उधेड़बुन में उसने साहस कर नुरुल की दुकान पर एक लडके को सूचना देकर भेजा। उसे लगा हो सकता है पति वहां पहुंचे होंगे।
पति के आने के बजाय नुरुल ही दौड़ता हुआ आया। उसने आते ही पूछा -- '' आपा क्या बात है , क्या हुआ ? '' माला ने उस मुस्लमान व्यक्ति पर विश्वास करना चाहिए या नहीं इसी कश्मकश में कहा - '' नुरुल भाई , रोहित की तबियत एकदम ख़राब हो गई है। उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना है। मेरे पास पैसे भी नहीं है और साथ भी चलने कोई नहीं। '' नुरुल - '' बस ! इतनी सी बात , आपा तुम्हारा भाई है न। आप तैयार रहना मै अभी साइकिल रिक्शा भेजता हूँ। ''इतना कहकर वह अपनी दुकान को लौट गया।
हैदरबादी साइकिल रिक्क्षा |
कुछ ही पलों में एक पर्दा लगा साइकिल रिक्शा माला के घर के सामने आकर रुक गया। माला , रोहित को लेकर उसमे जा बैठी। जब रिक्शा दौड़ने लगा तो माला ने देखा नुरुल अपनी साइकिल पर सवार साथ -साथ चल रहा था। डॉक्टर के पास पहुंचते ही रोहित को डॉक्टर ने जांचा और कुछ इंजेक्शन दिए।
डॉक्टर ने कहा - '' अब घबराने की कोई बात नहीं , काश थोड़ी और देर हो जाती तो , बच्चे का बचना कठिन था।'' नुरुल ने ही डॉक्टर को फीस दी और माला को पुनः रिक्षा से घर तक छोड़ गया, साथ ही रिक्षावाले को भी उसका किराया चुकता किया।
शाम के सात बज रहे थे। उसी समय माला के पति भी ड्यूटी से लौट चुके थे। उन्होंने साथ में नुरुल भाई को भी चाय पीने लाया था। नुरुल , से ही उन्हें रोहित की तबियत का समाचार मिला था।
माला पहली राखी को कैसे भूल सकती थी। उस दिन राखी का पर्व था। इसी कारण घर में स्वादिष्ट भोजन बनाया गया था। दोपहर के दो बज रहे थे , तभी दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। दरवाजा खोलकर देखा तो सामने मुस्कुराते नुरुल भाई थे। माला - '' यह क्या नुरुल भाई आप ? आइए आइए। '' नुरुल - '' आपा ! आज आप भूल गई क्या ? , आज कौनसा दिन है। '' माला के मन में भी नहीं आया था की नुरुल राखी बंधवाने उनके घर पहुँच जायेगा।
खैर , माला ने राखी की तैयारी आरम्भ कर दी। कुछ देर में मिठाई की थाल सजा कर पीटा रखा गया। नुरुल का चेहरा ख़ुशी से ओतप्रोत हो रहा था। माला ने आवाज लगाई - '' भाई , चलिए आज आपको पहली बार राखी बांध रही हूँ। '' नुरुल ख़ुशी ख़ुशी उस पिटे पर बैठ गया। माला ने अपनी परंपरा के अनुसार हिचकिचाते हुए लम्बा सा तिलक उसके माथे पर लगाया। फिर उसकी आरती उतारकर , कलाई पर राखी बांध दी। यह सब नुरुल ने इतनी ख़ुशी ख़ुशी से राखी बंधवा ली की बस , वह सब कुछ भूल गया था। उस समय कौन कह सकता था की वह एक सय्यद नुरुल है ,एक सच्चा मुसलमान।
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