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भारत का प्रथम चलचित्र '' राजा हरिश्चंद्र '' 1913


             भारत की आर्थिक राजधानी समझे जानेवाले मुंबई से हर कोई परिचित है। इसका मुख्य कारण सबसे अधिक व्यापार करनेवाला उद्योग यहीं स्थापित है। हम इस उद्योग को बॉलीवुड या फिर सिनेमा नगरी से ही अधिक परिचित है।  
         बूढ़ा हो या बालक हर कोई सिनेमा से प्रभावित है और उस सिनेमा इंडस्ट्री को जानने काफी उत्सुक होते है। वैसे भी 14 जून 2020 को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के कारण यह बॉलीवुड ख्याति प्राप्त से कुख्याति  प्राप्त बन गया है। इससे बॉलीवुड से कोसों दूर रहने वाले भी आज इसके समाचार जानने उत्सुक है। उसी इंडस्ट्री को लोग शंका भरी नज़रों से देख रहें है। 
         कभी इसी बॉलीवुड को '' बॉम्बे सिनेमा '' के रूप में जाना जाता था। जिसे '' हॉलीवुड '' के तर्ज़ पर बॉलीवुड कहा जाने लगा है। यह बॉलीवुड अन्य भारतीय फिल्म उद्योग से सम्बंधित है। यह इंडस्ट्री भारतीय सिनेमा निर्माण में स्थापित है , जो निर्मित फीचर फिल्मों की संख्या के अनुसार दुनिया का सबसे बड़ा सिनेमा उद्योग है। 
        वैसे इस इंडस्ट्री का शुरुवाती दौर कलंक रहित था। सुवर्ण युग कहा जाए तो भी ग़लत नहीं होगा , कारण इस दौर से लेकर सं 1980 तक कई कलाकारों ने अपनी सफलता के परचम लहराये है। उन कलाकारों को आज भी याद किया जाता है। 
                                               
                                                
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श्री. दादा साहेब फालके


           बॉलीवुड या बॉम्बे सिनेमा की नीव श्री. धुंडिराज गोविन्द फाळकेजी ने रखी थी। हम उन्हें आमतौर पर '' दादा साहेब फाळके '' के नाम से जानते है। वहीं श्री. दादा साहेब फाळकेजी को भारतीय फिल्म उद्योग का '' पितामह '' भी कहा जाता है।  

प्रारंभिक जीवन : -  श्री. दादा साहेब फाळकेजी का जन्म 30 अप्रैल 1870 को ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रेसीडेंसी [ मुंबई ] में हुआ था। श्री. दादा साहेब फाळके मंच के एक अनुभवी अभिनेता के आलावा शौकिया जादूगर भी थे। उन्होंने फिल्म से जुड़ने के पहले '' बड़ौदा '' स्थित कला भवन से फोटोग्राफी का पाठ्यक्रम भी किया था। वहीं श्री. दादासाहेब ने मुंबई के प्रसिद्ध सर , जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से प्रशिक्षण प्राप्त किया था। प्रशिक्षण के पश्चात वे प्रिंटिंग के कारोबार में व्यस्त थे। 

  सिनेमा बनाने की महत्वाकांक्षा : - श्री. दादासाहेब जो प्रिंटिंग का व्यवसाय कर रहे थे, वह किसी के साथ साझेदारी में फल - फूल रहा था। परन्तु सं. 1910 में उनके उस साझेदार ने आर्थिक सहायता वापिस लेते हुए , अपनी साझेदारी ख़त्मकर दी। इस कारण श्री. दादासाहेब काफी चिंतित हो गए। उसी दौरान उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ' ईसामसीह ' पर बनी एक फिल्म देखी। बस ! इस फिल्म को देखते ही उन्होंने '' रामायण '' और '' महाभारत '' जैसे पौराणिक कहानियों पर फिल्म बनाने का तय कर लिया। यहीं से प्रथम भारतीय चलचित्र बनाने का असंभव कार्य करनेवाले वे पहले व्यक्ति बनने के मार्गपर निकल पड़े।

       श्री. दादा साहेब ने सबसे पहले मौजूद सिनेमाघरों में जाकर फिल्मों का विश्लेषण तथा अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने 5 पौंड में एक कैमरा ख़रीदा और लगातार प्रतिदिन बीस घंटे अपने कैमरा से प्रयोग करते रहे।  इतने कठिन परिश्रम के कारण इसका प्रभाव उनकी सेहत पर पड़ा। इस प्रभाव के कारण श्री. फालकेजी की एक आँख ने जवाब दे दिया था। 
                                           
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श्री.दादा साहेब फाल्के अपनी पत्नी के साथ

   श्री. दादा साहेब के कठिन परिश्रम में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती. सरस्वती बाई ने उस दौर के सामाजिक विरोध को चुनौत्ती देते हुए श्री. फालेकेजी को भरपूर साथ दिया था। यहाँ तक कि चुनौती श्रीमती. सरस्वती बाई ने अपने सारे गहने भी गिरवी रख दिए थे। वे फरवरी 1912 में इंगलैंड गए जहाँ पर फिल्म प्रोडक्शन में क्रैश कोर्स सेसिल हेपवर्थ के अधीन रहते हुए पूर्ण किया।          श्री. फालकेजी ने क्रैश कोर्स के अंतर्गत एक फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चामाल का चुनाव करने में मदत करते रहे। इतना सारा अनुभव प्राप्त करते ही श्री. फालकेजी ने भारत का पहला मूक सिनेमा '' राजा हरिश्चंद्र '' का निर्माण शुरू किया। परन्तु उस दौर की सामाजिक परिस्थितियों के चलते सभी फिल्म निर्माण की व्यवस्था उन्होंने स्वयं करते हुए दृश्य लिखना, फोटोग्राफी करना और फिल्म प्रोजेक्शन का कार्य किया। 
                                                  
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प्रथम मूक सिनेमा '' राजा हरिश्चंद्र '' का एक दृश्य

                                                                                              
      इस तरह भारत का पहला मूक सिनेमा '' राजा हरिश्चंद्र '' की शूटिंग मुंबई स्थित दादर के एक स्टूडियो में एक सेट लगाकर आरम्भ कर दी। उस जमाने में महिलाओं का सिनेमा या रंगमंच पर कार्य करने की सामाजिक मान्यता नहीं थी।  इसी कारण इस '' राजा हरिश्चंद्र '' फिल्म में ''राणी तारामती ''नायिका की भूमिका निभानेवाले मुंबई के ग्रांट रोड स्थित एक भोजनालय में रसोईए का काम करनेवाले  श्री. अन्ना सालुंके ने निभाई थी। इसी भोजनालय में श्री. दादा साहेब नियमित जाते थे। यहीं से उनका परिचय श्री. अन्ना सालुंके से हुआ और सिनेमा में काम करने का प्रस्ताव उन्होंने मान्य किया।  
                                                          
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फिल्म '' राजा हरिश्चंद्र '' में महिला के भूमिका में अण्णा साळुंके


   श्री. दादा साहेब दिनभर शूटिंग करते रहते और रात में उसे डेवलप करते कारण वह एक्सपोज्ड फिल्म होती।
    श्री. फालकेजी ने प्रथम हिंदी फिल्म का लगातार 6 माह तक काम करते हुए उन्होंने 3700 फ़ीट वाली लम्बी फिल्म तैयार की।आखिरकार 21 अप्रैल 1913 को मुंबई के ओलम्पिया सिनेमा हॉल में '' राजा हरिश्चन्द्र '' को रिलीज़ किए गया। इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में दो कारणों से अपना नाम दर्ज किया है। जैसे एक तो वह फिल्म भारत के इतिहास की प्रथम हिंदी मूक फिल्म होने का तथा उस फिल्म में श्री. अन्ना सालुंके ने नायिका की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।