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पार्श्वगायिका आशा भोसले

              शास्त्रीय संगीत हो या फिर ग़ज़ल तथा पॉप संगीत के हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखरते हुए भारतीय भाषाओं जैसे मराठी, बंगाली, पंजाबी, भोजपुरी, गुजराती, तमिल, मलयालम, के आलावा विदेशी भाषा रुसी में भी अनेक गीतों में अपनी जादुई आवाज़ का परिचय देनेवाली हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय पर्श्वगायिका आशा भोसले से आज प्रत्येक भारतीय परिचित है। 
                                               
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फिल्म '' चुनरिया '' का पोस्टर
             आशा भोसलेजी  ने हिंदी फिल्मों में     पार्श्वगायन की शुरुवात सं. 1948 में  रविंद्र दवे द्वारा निर्देशित फिल्म ''   चुनरिया '' के संगीतकार श्री. हंसराज   बहल के लिए ' सावन आया ' गीत से   आगाज़ किया था। दक्षिण एशिया की   इस लोकप्रिय गायिका ने सभी भाषाओं को मिलाकर लगभग 12000 से अधिक गीतों को अपनी आवाज़ से सजाया है। 
          आशा भोसलेजी का जन्म महाराष्ट्र स्थित सांगली में 8 सितम्बर 1933 को उस जमाने के प्रसिद्ध मराठी थिएटर के अभिनेता, प्रसिद्ध नाटय संगीतकार तथा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतज्ञ एवं गायक श्री. दीनानाथ मंगेशकरजी के घर हुआ। वैसे देखा जाय तो श्री. दीनानाथजी गोवा के  'मंगेशी ' गांव के थे। इसी कारण उनके परिवार का उपनाम ' मंगेशकर ' पड़ा। उनके परिवार का वास्तविक उपनाम '' हार्डिकर '' है। 
                                                   
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दीनानाथ मंगेशकर

              श्री. दीनानाथ मंगेशकरजी ने आशाजी  को बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देना प्रारंभ किया था। परन्तु जब आशाजी      मात्र 9 वर्ष  की थी, उस दौरान श्री. दीनानाथ मंगेशकरजी वित्तीय संकट से   गुजर  रहे थे। उसी में वे बीमार भी हो गए और 24 अप्रैल 1942 को उनका निधन हो   गया। मृत्यु के समय उनकीआयु मात्र 41   वर्ष की थी। उनके देहान्त के पश्चात इनका   परिवार पुणे छोड़कर कोल्हापुर में बस गया   था। 
          परिवार की आर्थिक तंगी दूर करने   उनका परिवार कोल्हापुर से मुंबई आ गया। फिर आशा भोसलेजी तथा उनकी बड़ी बहन लता मंगेशकरजी ने गाना तथा फिल्मों में अभिनय का कार्य आरंभ कर दिया। उन्होंने सं. 1943 में मास्टर विनायक द्वारा निर्देशित मराठी फिल्म '' माझे बाळ '' में ' चला चला नव बाळा --- ' यह पहला मराठी गीत श्री. दत्ता डावजेकर के संगीत निर्देशन में गाया था। इस फिल्म में मीनाक्षी, दादा साळवी तथा स्वयं मास्टर विनायक ने भूमिका निभाई थी।        

 वैवाहिक जीवन का आरम्भ : -

                लता मंगेशकरजी हिंदी फिल्म जगत में स्थापित हो चुकी थी। उन्होंने अपनी व्यस्तता की देखभाल करने एक निजी सचिव की नियुक्ति की थी। उनका नाम था गणपतराव भोसले।  इन्ही गणपतराव भोसले से आशाजी को प्रेम हो गया, जबकि उस समय आशाजी की आयु मात्र 16 वर्ष की थी। वहीं गणपतराव भोसले की आयु 31 वर्ष की थी। 
           आशा भोसलेजी ने परिवार के सख्त विरोध के बावजूद घर से भागकर श्री. गणपतराव भोसले से विवाह कर लिया। परन्तु उनका यह प्रेम विवाह असफल रहा और सं. 1960 में ही वे अपने पति से अलग हो गई। इस विवाह के दौरान उन्हें दो संतानो की प्राप्ति हो चुकी थी और पुनः वे तीसरे के लिए गर्भस्थ भी थी। ऐसी स्थिति में वे अपने माँ के घर रहने लगी थी। 
              आशाजी 20 वर्षों तक अकेले ही अपना जीवन यापन कर रही थी। परन्तु सं. 1980 में उन्होंने हिंदी फिल्म जगत के जानेमाने संगीतकार श्री. राहुल देव बर्मनजी जिन्हे संगीत की दुनिया में  '' पंचमदा ''के नाम से जाना जाता है से पुनः विवाह कर लिया। इस विवाह का वैशिष्ट्य यह था कि इस विवाह के समय आशाजी की आयु 47 वर्ष की थी, जबकि श्री. राहुल देव बर्मनजी की आयु 41 वर्ष की थी। आशाजी, श्री. राहुल देव बर्मनजी से 6 वर्ष बड़ी थी। इसके उल्टा प्रथम विवाह के दौरान आशाजी की आयु मात्र 16 वर्ष की थी और श्री. गणपतराव की आयु 31 वर्ष की थी। तब उन दोनों में 15 वर्ष का अंतर था। 
            आशा भोसलेजी ने चौदह वर्षों तक सफलतापूर्वक श्री. राहुल देव बर्मनजी का साथ निभाया। अपनी आयु के 54 वर्ष में 4 जनवरी 1994 को श्री. राहुलजी का निधन हो गया। 
             आशाजी हिंदी सिनेमा के लिए गाना चाहती थी, परन्तु हिंदी सिनेमा में गीता दत्त, लता मंगेशकर तथा शमशाद बेगम छाई हुई थी। इसी कारण आशा भोसलेजी के हिस्से अच्छी फ़िल्में मिलना कठिन था। उन्होंने सं. 1950 के दशक में कम बजट वाली फिल्मों के लिए संगीतकार ए. आर. कुरैशी, सज्जाद हुसैन तथा गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में '' दिलीप कुमार '' अभिनीत फिल्म '' संगदिल '' से आशाजी को अपनी पहचान मिली। 
                                                   
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संगीतकार ओ. पी. नय्यर

               ''  संगदिल '' की सफ़लता के पश्चात     सं. 1953 में जानेमाने निर्देशक श्री. बिमल   रॉय ने अपनी फिल्म '' परिणीता '' में  आशाजी को गाने का अवसर प्रदान   किया। जबकि आशाजी को वास्तविक   सफलता का श्रेय सं. 1956 में निर्माता   -   निर्देशक श्री. बी. आर. चोपड़ा की फिल्म ''  नया दौर '' से मिला। इस फिल्म का   संगीत ओ. पी. नय्यरजी ने दिया था। इनके संगीत निर्देशन में आशाजी की लोकप्रियता में चार चाँद लग गए। इसी वर्ष श्री. ओ. पी. नय्यरजी ने फिल्म '' सी. आई. डी. '' के गीत भी आशाजी से गवायें थे। आशाजी की आवाज़ और नैयरजी का अनोखा मिश्रण लोगों के मनों को छूने लगा। फिर क्या था इस जोड़ी ने अनेक गीत हिंदी सिनेमा को दिए है।  
                    आशाजी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए बड़े संगीतकार सचिन देव बर्मन तथा रवि ने भी उन्हें अपने संगीत निर्देशन में गाने गवाने का अवसर प्रदान करना आरम्भ कर दिया था। परन्तु प्रसिद्धि की बुलंदियों पर आशाजी को पहुंचने वाले संगीतकार थे श्री. आर. डी. बर्मन। सं. 1966 में विजय आनंद द्वारा निर्देशित फिल्म '' तीसरी मंजिल '' में उन्होंने आशा भोसलेजी को गाने का अवसर प्रदान किया था। इसमें शम्मी कपूर, आशा पारेख,प्रेमनाथ, तथा प्रेम चोपड़ा की मुख्य भूमिका थी। इस फिल्म में आशा भोसलेजी ने मोहम्मद रफ़ीजी के साथ मिलकर '' आ जा  आ जा मै हूँ प्यार तेरा '', ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहाँ '' और  '' ओ मेरे सोना रे सोना रे ---'' गीत गाये जो खूब लोकप्रिय हुए थे।      
                     इसके पश्चात हिंदी सिनेमा जगत में जब भी कोई फिल्म बनती उसमे हेलन का डांस होता तो उस गीत को आशाजी ही गाती। जैसे सं. 1960 से लेकर सं. 1970 तक आशाजी , हेलन की आवाज का पर्याय बन चुकी थी। आशाजी का हिंदी सिनेमा जगत में कद बढ़ता चला गया। इसका अधिकतर श्रेय श्री. ओ. पी. नय्यर को ही जाता है। 
                                                                                 
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गायक -संगीतकार राहुल देव बर्मन

                       सं. 1971 में ताहिर हुसैन ने जीतेन्द्र तथा आशा पारेख को लेकर एक हिंदी थ्रिलर फिल्म '' कारवाँ '' बनाई थी, जिसका संगीत निर्देशन आर. डी. बर्मन ने ही दिया था। '' पिया तू अब तो आ जा ---'' यह युगल गीत आशा भोसले ने आर. डी. बर्मन के साथ गाया था। यह गीत उस दौर में बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस गीत को फिल्म फेयर  पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।  
                 मुजफ्फर अली द्वारा सं. 1981 में रेखा, फारुख शेख़ तथा अन्य कलाकारों को लेकर बनाई फिल्म '' उमराव जान ''  में आशा भोसलेजी ने '' दिल चीज क्या है ----'', '' इन आँखों की मस्ती के ----'', और '' यह क्या जगह है दोस्तों ----'' जैसी ग़ज़लों को संगीतकार खय्याम के संगीत निर्देशन में गाकर अपनी निराली ही प्रतिभा से सबको अचंभित कर दिया था। इन ग़ज़लों के कारण आशाजी को प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार पाने का सम्मान मिला है। 
             आशा भोसलेजी की समय - समय पर एक नई प्रतिभा को देखने मिला है। परन्तु लेखक, निर्देशक तथा निर्माता राम गोपाल वर्मा द्वारा सं. 1995 में बनायी फिल्म '' रंगीला '' में आशाजी की बहुमुखी प्रतिभा उजागर हुई। उन्होंने उदित नारायण के साथ '' तन्हा तन्हा यहाँ ---'' एक यादगार गीत हिंदी सिनेमा को दिया है। इसके आलावा संगीतकार ए. आर. रहमान के संगीत निर्देशन में '' रंगीला रे ---'' जैसा गीत गाय है। इस फिल्म में आशाजी की यह विशेषता यह थी की उर्मिला मातोंडकर जैसी नवयुवती को 62 वर्षीय आशाजी ने अपनी आवाज दी थी। 

           आशाजी को '' तन्हा तन्हा ----'' गीत के लिए विशेष फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला है। उनका यह गीत आज भी सुपरहिट है। 

पुरस्कार एवं सन्मान: - 

             फिल्मफेयर बेस्ट फीमेल प्लेबैक अवार्ड : - 1968 में '' गरीबों की सुनो ---'' फिल्म [दस लाख - 1966 ], 1969 में '' परदे में रहने दो ---'' फिल्म [ शिकार - 1968 ], 1972 में '' पिया तू अब तो आजा ---'' फिल्म [ कारवाँ - 1971 ], 1973 में '' दम मारो दम----'' फिल्म [ हरे रामा हरे कृष्णा - 1972 ], 1974 में '' होने लगी है रात ---- '' फिल्म [ नैना -1973 ], 1975 में '' चैन से हमको कभी ----'' फिल्म [ प्राण जाये पर वचन ना जाए - 1974 ], 1979 '' ये मेरा दिल ----'' फिल्म [ डॉन -1978 ] के आलावा उन्हें सं. 2001 में फिल्म फेयर लाइफटाइम एचिवमेंट अवार्ड प्राप्त हुआ है। 
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