महामना पंडित मदन मोहन मालवीय 



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पंडित मदन मोहन मालवीय


 कोटि कोटि कंठी से निकली आज यही स्वर धरा है 
भारत वर्ष हमारा है , यह हिंदुस्तान हमारा है  ''

                      श्री बालकृष्ण शर्मा  ' नविन ' जी की इन पंक्तियों से हमारे भारत वर्ष की गरिमा झलकती है। हमारे इसी देश में अनेक महान नेता हुए जैसे महात्मा गाँधी , चितरंजन दासजी , स्वातंत्रवीर सावरकर तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल वहीं एक ऐसे नेता भी हुए जिन्हे हमारी जनता ने महामना का नाम दिया है , वे पंडित मदन मोहन मालवीय जी ही है। इस विशाल ह्रदय पुरुष का कोई भी विरोधी न था।  मानवता के गुणों के तो वे मानो झरने थे। वहीं मालवीयजी  शिक्षाशास्त्री, महावक्ता तथा अत्यंत सफल वकील के अतिरिक्त एक कृषि थे , जिन्होंने अपना सर्वस्व देश की सेवा में सहज अर्पण किया।   
             पंडित मदन मोहन मालवीयजी का जन्म 25 दिसम्बर 1861को हुआ था।  उनके पिता का नाम पंडित व्रजनाथजी था।  उनका परिवार मालवा का रहने वाला था , इस कारण उन्होंने मालवीय शब्द को अपनाया। मदन मोहनजी के पितामह का नाम पंडित प्रेमधर मालवीय था।  वे संस्कृत पांडित्य के लिए विख्यात थे।  पंडित मदन मोहनजी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हिंदी और संस्कृत में हुई।  इसके पश्चात उन्हें    ' धर्मज्ञानोपदेश  पाठशाला में संस्कृत सीखने भर्ती कराया गया।  आरंभिक शिक्षा के पश्चात उन्हें अंग्रेजी जिला स्कूल में भेजा गया।  उन्होंने यहां से सं 1879 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की।            
            महामहोपाध्याय पं. आदित्यराम भट्याचार्य जी ने मालवीयजी में स्वदेश भक्ति और संस्कृति के बीज बोये थे। पंडितजी ने सं 1884 में बी. ए .की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।  अपने कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने ' साहित्य परिषद् ' की स्थापना की थी।  अपने पारिवारिक कारणों के लिए अपनी एम् ए  की पढाई छोड़ी थी। 
            पं . मालवीयजी ने एम् ए की पढाई छोड़ने के पश्चात जिला स्कूल में सहायक अध्यापक की नियुक्ति स्वीकार कर ली।  उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर देश सेवा का व्रत अपना लिया।  कांग्रेस की स्थापना के दूसरे वर्ष ही सं 1886 की बैठक में भाग लेने पंडितजी कलकत्ता गए।  यहीं पर उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक भाषण दिया था। 
            पं . मालवीयजी ने इलाहबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी -पत्र     ' इंडियन यूनियन ' का कई वर्षों तक संपादन किया। प्रयाग से उन्होंने सं 1908 में हिंदी साप्ताहिक ' अभ्युदय ' तथा अंग्रेजी में ' लीडर ' का प्रकाशन आरम्भ किया। सं 1910 ई में पंडित मालवीयजी ने एक ' मर्यादा ' नामक मासिक पत्रिका निकाली , इस पत्रिका में राजनिति पर गंभीर लेख छपने लगे। 
            ' हिंदुस्तान ' में काम करते हुए मालवीयजी ने सं 1891 में वकालत भी  पास की थी। मालवीयजी देश के शिक्षा क्षेत्र में यूरोप की संस्कृति की छाप एवं भारतीय संस्कृति के प्रति अश्रद्धा देखकर चकित रहते।  उनके विराट आंदोलन के कारण सं 1909 में हिंदी को उर्दू के साथ मान्यता मिल गई। 
             लाहौर  कांग्रेस में पहली बार सं 1900 में पंडित मालवीयजी अध्यक्ष चुने गए, अध्यक्ष पद पर उन्होंने ' मिंटो माले ' सुधारों की तीव्र आलोचना की थी।  वे इलाहबाद नगर बोर्ड के सदस्य तथा उपाध्यक्ष भी रहे।  
             सं 1902 में पं . 1902 में मालवीयजी को विधान सभा का सदस्य बनाया गया।  सं 1909 में प्रांतीय विधान सभाओं द्वारा निर्वाचन हुआ जिसमे पंडित मालवीयजी को प्रतिनिधि चुना गया।  वाराणसी का ' हिन्दू विश्वविद्यालय ' पं . मालवीयजी का अमर कीर्ति स्तम्भ है।  4 फरवरी 1918 के शुभ मुहर्त में शास्त्रोक्त रीति से ' हिन्दू विश्वविद्यालय ' की स्थापना हुई थी।  
            पंडित मदन मोहनजी के मानवीय गुणों में नम्रता उल्लेखनीय है।  उनके संपर्क में आए हुए व्यक्ति उनसे प्रभावित हो जाते।  तभी तो भारत के  वायसरायों में लार्ड रीडिंग और लार्ड इरविन , ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैक्डानल तथा तत्कालीन भारत मंत्री सेमुअल हारे जैसे व्यक्ति भी उनके प्रशंसकों में से थे। 
            शायद ही पंडित मालवीयजी ने किसी को कटु वचन कहा हो।  वे स्वयं सह लेते थे किन्तु दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचाते थे ऐसे नवभारत के इस निर्माता का स्वर्गवास 12 नवम्बर 1946 को वाराणसी में हुआ।