https://www.makeinmeezon.com/2019/01/blog-post_17.html
पंजाब केसरी -- लाला लाजपत राय



                      लाला लाजपत राय उन नेताओं में से थे , जिनका पंजाब में आर्य समाज की नींव रखने और विशेषकर शिक्षा प्रचार के कार्यक्रम का निर्माण करने से घनिष्ठ सम्बन्ध था । सार्वजनिक सेवा और राजनीती के क्षेत्र में उनका योगदान इतना अधिक है कि वे बीसवीं शती के सर्वप्रथम और सबसे अधिक प्रभावशाली पंजाबी नेता ही नहीं , समस्त भारत के मूर्द्धन्य राजनेताओं में माने जाते थे । लाला लाजपत राय सं १८८२ में स्वामी दयानन्द सरस्वतीजी के देहांत से एक वर्ष पूर्व आर्य समाज में सम्मिलित हुए थे ।
                     लाला लाजपत रायजी का जन्म २८ जनवरी  १८६५ को पंजाब प्रान्त के मोगा जिले में अग्रवंश के एक अग्रवाल परिवार में हुआ था  । भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के गरम दल के नेता के रूप में उन्हें माना जाता था , जबकि उनके साथियों में बाल गंगाधर तिलक तथा बिपिन चंद्र पाल थे  । शायद इसी कारण इतिहास में इस त्रिमूर्ति का लाल- बाल - पाल नाम प्रचलित हुआ ।
                   लाजपत रायजी ने हरियाणा के रोहतक तथा हिसार शहरों में वकालत भी कि थी । उस समय वहां कि नगरपालिका के मंत्री और जिले के एकछत्र नेता बन गए । उन्होंने शिक्षा में विशेष रूचि ली । दयानन्द निर्वाण के अवसर पर लाहौर के आर्य समाज कि ओर से अजमेर में आयोजित एक शोक सभा में लालाजीगए थे  । वहां जो सार्वजनिक सभा हुई , उसमे वे ऐसा बोले कि जनता पर उनकी वकृत्व -शक्ति का प्रभाव उसी दिन जम गया ।
लाला लाजपतरायजी ने अन्य लोगों के प्रयत्न से सं १८८६ में लाहौर में स्वामीजी के स्मारक के रूप में दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की  । उनके विकासशील व्यक्तित्व के लिए हिसार व्यापक क्षेत्र नहीं था । इसलिए अपने मित्रों के आग्रह पर वे सं १८९२ को लाहौर में जा बसे। लालाजी पीड़ित जनता के कष्टों से विव्हल हो उठते तभी तो उन्होंने कई अनाथालयों और उद्योग केंद्रों की स्थापना की । उसी दौरान सं १८९६ में भयंकर अकाल तथा उसके पश्चात दुष्कालों में लालाजी ने अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान की । जिस कारण जनता द्वारा ही नहीं अपितु अंग्रेजी सरकार द्वारा भी उन्हें मान्यता मिली । वे राजस्थान , बिहार , ओडिशा आदि क्षेत्रों में पीड़ितों की सहायता के लिए दौरा करते रहे  ।
                           सं १९१३ में गुरुकुल कांगड़ी में प्रथम अखिल भारतीय अछूत सम्मलेन आयोजित किया गया था , जिसके सभापति लालाजी थे । इन वर्गों की शिक्षा के लिए उन्होंने उस समय अपनी ओर से ४० हजार रूपए दान दिए थे । अछूतों की स्थिति की जाँच करने नैनीताल आदि प्रदेशों का दौरा किया ।
                         सं १८८८ में लाला लाजपत रायजी  ने राजनितिक क्षेत्र में प्रवेश किया और यही से उनका कांग्रेस से सम्बन्ध बना  । यही से वे पंजाब के सर्वप्रमुख और देश के अग्रणी नेताओं में समझे जाने लगे । लालाजी से गांधीजी के यदाकदा मतभेद रहा करते थे , फिर भी गांधीजी उनका आदर करते थे । लालाजी की देशभक्ति तथा निर्भिकता की सदा प्रशंसा किया करते थे  ।
                        लालाजी ने अपनी पहली पुस्तक ' निर्वासन की कहानी ' में अपने कष्टों का वर्णन किया है , जो उन्हें झेलने पड़े थे । परन्तु उन्होंने इन कष्टों का स्वागत ही किया था । उन्होंने ही १९०९ में पंजाब हिन्दू महासभा की स्थापना की ।
                                 वे एक प्रतिनिधि मंडल में शामिल होकर इंग्लैंड गए थे । उस दौरान प्रथम महायुद्ध छिड़गया था । उन्हें टोकियो से ही भारत के बजाय इंग्लैंड जाने पर बाध्य किया गया था । वहीँ  से वे अमेरिका चले गए और सं १९२० तक वंही रहे  । इसी  काल में उन्होंने ' यंग इंडिया ' और ' पोलिटिकल फ्यूचर ऑफ इंडिया ' नामक पुस्तके लिखी  ।लालाजी ने अनेक पत्र पत्रिकाओं में भारत विषयक लेख लिखे । इसके पश्चात जेब वे भारत लौटे तो उन्होंने ' लोक सेवक मंडल ' की स्थापना की । फिर मालवीय जी  के साथ मिलकर हिन्दू महासभा को संगठित किया वहीँ चितरंजनदास आदि से मिलकर स्वराज्य पार्टी को उभारा ।
                       लाला लाजपतरायजी प्रबल समाज सुधारक , जनसेवक ,शिक्षा विशेषज्ञ , हिंदी प्रेमी ,सफल लेखक और शक्तिशाली वक्ता थे  । सेवा का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो , जिसमे उन्होंने खुछ न खुछ काम न किया हो ।लेखक के रूप में देखे तो उनकी रचनाओं में भाषा का वह प्रवाह , तथ्यों और घटनाओ का वह संकलन मिलता है । लालाजी ने मैजिनी , गैरीबाल्डी , शिवाजी, कृष्ण , दयानन्द आदि महान आत्माओं की जीवनियाँ लिखी । उनकी अंतिम पुस्तक ' मिस मेयो ' जो ' मदर इंडिया ' के जवाब में लिखी गई थी , जो ' दुखी भारत ' के नाम से प्रकाशित हुई ।
                   उस समय इन्द्र विद्यावाचस्पति जी  ने लालाजी के सम्बन्ध में लिखा था ----
 '' वाणी , स्वर , इन जन्मसिद्ध विभूतियों का लालाजी ने बहुत यत्नपूर्ण संस्कार किया था । व्याख्यान देने की कला का उन्होंने कलाकारों की भांति अभ्यास किया था । परिणाम यह था की वह अपने समय में हिंदुस्तानी के सर्वोकृष्ट वक्ता बन गए ।''
                                       वैसे तो लालाजी को उनकी विशिष्ट सेवा के लिए पंजाब केसरी भी कहा जाता है ।त्रिमूर्ति नाम से विख्यात लालाजी , बालगंगाधर  तिलक तथा बिपिन चंद्रपाल ने सर्व प्रथम भारत में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की थी  । इसके कारण समूचा देश इनके साथ हो गया । ३० अक्टूबर १९२८ को लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया । जिसके दौरान हुए लाठी चार्ज में वे बुरी तरह से घायल हो गए।
                             भारत की दूसरी सबसे बड़ी सरकारी वाणिज्यिक बैंक पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना लालाजी ने की थी । इस बैंक को १९ मई १८९४ को भारतीय कंपनी अधिनियम के तहत अनारकली बाजार लाहौर में इसके कार्यालय के साथ पंजीकृत किया गया था । इसके अतिरिक्त उन्होंने लक्ष्मी बीमा कंपनी की भी स्थापना की थी ।
                   साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित विशाल प्रदर्शन के दौरान घायल १७ नवंबर १९२८ को अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर दी । उनकी मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा । चंद्र शेखर आज़ाद , भगत सिंग, राज गुरु तथा सुखदेव के आलावा अन्य क्रांतिकारियों ने इसका बदला लेने का निर्णय लिया और १७ दिसंबर १९२८ को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया ।