बॉलीवुड में खलनायकों का उदय

                                                    

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बॉलीवुड के जानपहचाने खलनायक   

                     भारतीय हिन्दी सिनेमा में खलनायकों का इतिहास एक दिलचस्प यात्रा को दर्शाता है जो दशकों में विकसित हुई है। भारतीय हिंदी सिनेमा के शुरुवाती दिनों से लेकर वर्तमान तक हिंदी सिनेमा में  खलनायकों ने कहानियों को आकार देने, कहानियों में जटिलता जोड़ने और अक्सर स्वयं को प्रतिष्ठित व्यक्ति बनने में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
           यहाँ, हिन्दी सिनेमा में खलनायकों के इतिहास का संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया गया है। जैसे कि भारतीय हिन्दी सिनेमा के प्रारंभ से किन-किन अभिनेताओं ने खलनायकों की भूमिका को किस तरह क्रूरता के सांचे में ढाला है और अपने अभिनय के द्वारा दर्शकों के दिलों पर राज किया है।

हमारे, हिन्दी सिनेमा में अभिनेता हीरालाल ठाकुर को हिन्दी सिनेमा का प्रथम सुपरस्टार खलनायक माना जाता है।


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हिंदी सिनेमा के प्रथम सुपरस्टार खलनायक हीरालाल ठाकुर

1930-1940 हिन्दी सिनेमा का मूक युग:

                 हिन्दी सिनेमा के शुरुवाती वर्षों में, एक विशिष्ट खलनायक की अवधारणा को अच्छी तरह से परिभाषित नहीं किया गया था। इस युग की फिल्मों में अक्सर सरल कथाएँ होती थी और संघर्ष मुख्य रूप से सामजिक मुद्दों पर केंद्रित होता था।

            इस दशक में फिल्म "अयोद्धा" 1932, "लाल-ए-यमन 1933" , और 1934 में "बम्बै की मोहनी" , "चार दरवेश" , "डाकू की लड़की" और "मिस 1933" जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ था।

               हालाँकि, टॉकीज़ के आगमन के साथ खलनायकों का चरित्र आकार लेने लगा। 1950 का दशक मेहबूब खान और राजकपूर का युग रहा है। इस दशक  में इन दोनों ने कई फ़िल्में बनायी, जिनमे -

             महबूब खान की फिल्मों में: "रोटी [1942]" , "अलीबाबा [1940]" , "तकदीर [1943]" , "हुमायूँ [1945]" , "अंदाज़ [1949]" और "ऐलान [1947]" जैसी फ़िल्में है।             राजकपूर की फिल्मों में: "बरसात [1949]" , "सुनहरे दिन [1949]" , "अमर प्रेम [1948]" , "बावरे नयन" और "जान पहचान [1950]" शामिल है।
             मेहबूब खान और राजकपूर जैसे फिल्म निर्माताओं ने सामजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं की खोज शुरू की। इस युग में खलनायकों को अक्सर पूंजीपतियों, सामंती प्रभुओं या सामाजिक बुराईयों का प्रतिनिधित्व करनेवाले भ्रष्ट व्यक्तियों के रूप में चित्रित किया जाता था।

              इसी युग में प्राण और के. एन. सिंह जैसे प्रतिष्ठित अभिनेता उल्लेखनीय खलनायक के रूप में उभरे।                                                                            

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अभिनेता से खलनायक प्राण और के. एन. सिंह

1960 का दशक  - प्राण का उदय  : -

                                                                                          
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उल्लेखनीय खलनायक प्राण  

                1960 का दशक  - प्राण का उदय  : -  प्राण 1960 के दशक में सर्वोत्कृष्ट खलनायक बन गए जो अपने बहुमुखी अभिनय के लिए जाने जाते थे। उन्होंने सौम्य और परिष्कृत से लेकर क्रूर और खतरनाक तक विभिन्न नकारात्मक किरदार निभाय है।

      नकारात्मक किरदारों में फिल्म "छलिया" , "जब प्यार किसी से होता है" , "राज कुमार" , "शहीद" , "पत्थर के सनम" और "मिलन" जैसी फिल्मों को देखा जा सकता है। इसी युग में अमरीश पूरी का भी उदय हुआ, जो बाद में हिन्दी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित खलनायकों में से एक बने।

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हिंदी सिनेमा के प्रतिष्ठित खलनायक अमरीशपूरी

 1970 का दशक: इस दशक में अमिताभ बच्चन द्वारा चित्रित "एंग्री यंग मैन" के व्यक्तित्व के उदय के साथ, खलनायकों का चरित्र भी बदलने लगा, उनमे और क्रूरता झलकने लगी। इसी दशक में 1975 में निर्देशक रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित फिल्म "शोले" के खलनायक ' गब्बर सिंह " यानी अमजद खान और प्रेम चोपड़ा जैसे प्रतिष्ठित खलनायकों को अपार प्रसिद्धि मिली।                        
                                                             

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1975 में प्रदर्शित फिल्म " शोले " में अमजद खान

                  इस दशक में नायकों और खलनायकों के बीच गहन संवादों और यादगार टकरावों का युग शुर हुआ।

1980 का दशक: मोगैम्बो और मोगैम्बो से प्रेरित खलनायकों का युग।

                                                  

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"मोगैम्बो खुश हुआ " के जानेमाने खलनायक अमरीशपुरी

           1987 में निर्माता बोनी कपूर और निर्देशक शेखर कपूर की फिल्म "मिस्टर इंडिया" में प्रतिष्ठित खलनायक अमरीशपुरी ने जो 'मोगैम्बो' का किरदार अस्सी के दशक में अन्य खलनायकों के लिए जैसे एक मानक बन गया। उनका लोकप्रिय डायलॉग "मोगैम्बो खुश हुआ" बहुत मशहूर हो गया।

         इस युग में अक्सर अद्वितिय विशेषताएँ होती थी और नकारात्मक पात्रों का चित्रण अधिक शैलीबद्ध हो गया था।

1990 का दशक : एंटी हीरो और जटिल खलनायक 

                                                 

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एंटी हीरो और जटिल खलनायक शरुखखान,सलमानखान और नाना पाटेकर

           1990 के दशक में एंटी-हीरो का उदय हुआ। जिसमे शाहरुख़खान हुए सलमानखान जैसे अभिनेताओं ने ग्रे शेडवाले किरदार निभाएँ है।

          विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म "परिंदा" में नाना पाटेकर और निर्देशक सुभाष घई की फिल्म "खलनायक" में जैकी श्रॉफ जाइए अभिनेताओं के अभिनय के साथ इस युग में खलनायक अधिक सूक्ष्म और जटिल हो गए।

2000 का दशक : फिल्म निर्माताओं ने रूढ़िवादी चरित्रों से हटकर खलनायकों के चित्रण के साथ प्रयोग किये। अभिनेता इरफ़ान खान और अभिनेता मनोज बाजपेयी जैसे कलाकारों ने नकारात्मक भूमिकाओं में यथार्थवाद लाया।

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अभिनेता इरफ़ान खान और अभिनेता मनोज बाजपेयी
                                                  

            इस दशक में सामूहिक कलाकारों के साथ मल्टी स्टारर फिल्मों का भी उदय हुआ, जिससे अधिक विस्तृत चरित्र-चित्रण का प्रचलन आरम्भ हो गया।

          इस दशक के पश्चात एंटी-हीरो का अवधारणा लगातार फलती-फूलती रही, निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म "पद्मावत" में रणवीर सिंह और निर्देशक आदित्य धर की फिल्म "उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक" में विक्की कौशल जैसे अभिनेताओं ने अस्पष्ट नैतिकता वाले किरदार निभाए।जटिल पृष्ठभूमि कहानियों और सम्बंधित उद्देश्यों वाले खलनायक एकल प्रवृतिवाले बन गए, जो अच्छे और बुरे की पारंपारिक धारणाओं को चुनौती दे रहे थे।

         हिन्दी सिनेमा में खलनायकों का इतिहास कहानी कहने और चरित्र-चित्रण की विकसित होती हुई प्रकृति को दर्शाता है। एक आयामी विरोधियों से लेकर बहुआयामी चरित्रों तक, खलनायकों का चित्रण अधिक सूक्ष्म हो गया है, जो भारतीय हिन्दी सिनेमा की समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

                     खलनायकों का जन्म,निधन और पहली फिल्म : - 

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