भगवान राम के किरदार के लिए प्रसिद्ध - अरुण गोविल 

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                                                    रामजी का प्रतिष्ठित किरदार निभानेवाले अरुण गोविल

                 भारतीय दूरदर्शन पर आज से 37 वर्षों पहले निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर द्वारा निर्मित भारतीय टी. वी. शृंखला का ग़ौरव समझे जानेवाले "रामायण" में भगवान् रामजी के प्रतिष्ठित किरदार निभानेवाले अभिनेता अरुण गोविल को कैसे भुलाया जा सकता है, आज जिन्हे दुनियाभर के लाखों-करोड़ों लोगों ने अपने दिलों में बसाया है।
                   अरुण गोविल द्वारा भगवान् रामजी का किरदार निभाना केवल एक अभिनय का प्रदर्शन मात्र नहीं था, बल्कि यह सम्पूर्ण पीढ़ी के लिए सदाचार, नैतिकता तथा भक्ति का प्रतिनिधित्व माना गया है। इसके आलावा भारतीय पौराणिक कथाओं के साथ सांस्कृतिक विरासत में रूचि को बढ़ाने का योगदान भी है।

जन्म एवं शिक्षा : -             

                  अरुण गोविल का जन्म 12 जनवरी 1952 को उत्तर प्रदेश स्थित मेरठ में श्री। चंद्रप्रकाश गोविल के घर हुआ। उनके पिता श्री। चंद्रप्रकाश गोविल को 6 संताने थी, जिनमे चार भाई तथा दो बहने। अरुण उनकी चौथी संतान है।

           उन्होंने अपनी पढ़ाई इंजीनियरिंग साइंस में उत्तर प्रदेश के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से पूर्ण की है। उनके पिता की इच्छा थी कि अरुण भी सरकारी नौकरी करें, परन्तु पिता की इच्छा के विपरीत अरुण गोविल कुछ और करना चाहते थे।

          अरुण पढ़ाई के साथ-साथ कुछ नाटकों में भी हिस्सा लिया था। वे अपनी इच्छा को साकार रूप देने 1975 में अपने विवाहित बड़े भाई विजय गोविल के पास मुंबई चले गए, उस समय उनकी आयु मात्र 17 वर्ष की थी। यहाँ आने के पश्चात उनकी किस्मत करवट बदलने लगी। 

करियर : -                          

                     अरुण गोविल अपने भाई के पास पहुँच गए थे। उनकी भाभी कोई और नहीं, बल्कि भारतीय टेलीविज़न शो "फूल खिले है गुलशन गुलशन" की होस्ट एवं जानीमानी अभिनेत्री तबस्सुम है। अरुण गोविल अपने भाई के व्यवसाय से तो जुड़ चुके थे, परन्तु उनको इस काम में मन नहीं लग रहा था। एक कलाकार कब तक अपनी कला से दूर रहेगा? उनका मन बार-बार अभिनय करने के लिए उकसा रहा था। आखिर अरुण गोविल ने अभिनय करने की ठान ली।

यहीं, से अरुण गोविल की किस्मत ने करवट बदलनी शुरू कर दी। एक दिन उनकी भाभी ने उनका परिचय राजश्री प्रोडक्शन्स के संस्थापक श्री। ताराचंद बड़जात्या से कराया।  
  
                                                                 
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अरुण गोविल की फिल्म " पहेली " और दूसरी फिल्मों का पोस्टर


 हिंदी सिनेमा में पहला ब्रेक  : -

              1977 में ताराचंद बड़जात्या ने अपने होम प्रोडक्शन की फॅमिली ड्रामा फिल्म "पहेली" में अरुण गोविल को अवसर दिया, जिसका निर्देशन प्रशांत नंदा ने किया था तो इस फिल्म को अपना मधुर संगीत संगीतकार रविन्द्रजैन ने दिया था।

               इस फिल्म की एक विशेषता यह थी कि अरुण गोविल के आलावा, इस फिल्म के जरिए नमिता चंद्रा, पूर्णिमा जयराम, नीना महापात्र, अनीता सिंह और आह के जानेमाने पार्श्वगायक सुरेश वाडकर ने बॉलीवुड के हिन्दी सिनेमा में डेब्यू किया था। फिल्म "पहेली" के पश्चात 1979 में पुनः ताराचंद बड़जात्या ने अपनी फिल्म "सावन को आने दो" में एक और मौका प्रदान किया, जिसका निर्देशन कनक मिश्रा ने किया था। यह फिल्म अपने मनमोहक गानों के आलावा अरुण गोविल के बेमिसाल अभिनय के कारण लोकप्रिय बनी। उस दौर की कई सिने पत्रिकाओं में अरुण गोविल को "कल का सितारा" भी कहा था।  

               फिल्म "सावन को आने दो" के पश्चात वैसे भी अरुण गोविल का स्टारडम बढ़ चूका था। इसी वर्ष उन्हें राजश्री प्रोडक्शन की अगली फिल्म "साँच को आंच नहीं" में फिर से अपने अभिनय का करिश्मा दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ। इस फिल्म को निर्देशक सत्येन बोस ने निर्देशित किया था।

फिल्म "पहेली" , "सावन को आने दो" और फिल्म "साँच को आंच नहीं" जैसी फिल्मों के कारण अनेक फ़िल्में अरुण गोविल की किस्मत पर दस्तक देने लगी।

रामायण धारावाहिक  : - 

                                                    

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रामायण धारावाहिक का पोस्टर

               अरुण गोविल दुनियाभर में अपार सफलता तब मिली जब 1987-88 के दौरान निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर द्वारा निर्मित "रामायण" धारावाहिक का भारतीय दूरदर्शन के आलावा दुनिया के 17 देशों में 20 विभिन्न चैनलों से प्रसारण किया गया था।

            इस धारावाहिक में राम और सीता का प्रतिष्ठित किरदार निभानेवाले लोकप्रिय अभिनेता अरुण गोविल तथा सीता माता की भूमिका निभानेवाली अभिनेत्री दीपिका चिखलिया को दर्शकों ने खूब सराहा।

            "रामायण" धारावाहिक के पश्चात मानो अरुण गोविल एवं दीपिका भारत के घर-घर में ही बस गए हो, जैसे अरुण गोविल का अभिनेता रामजी के अवतार में लुप्त हो गया हो।

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"विक्रम और बेताल" सीरियल में अरुण गोविल 

               अरुण गोविल ने "रामजी" के चरित्र से बाहर निकलकर भारतीय टेलीविजिन की एक और पौराणिक शृंखला "विक्रम-बेताल" में राजा विक्रमादित्य के किरदार को निभाया था। इस शृंखला को भारतीय दूरदर्शन के डी. डी. चैनल पर 1985 में प्रसारित किया गया था।

             अरुण गोविल ने केवल रामजी का किरदार ही नहीं निभाया बल्कि उन्होंने कई टी. वी. शो में विभिन्न पौराणिक पात्रों के किरदारों में जान डाली है जैसे—


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फिल्म " गोविंदा गोविंदा " में भगवन विष्णु , धारावाहिक " शिव महिमा " में शिवजी और फिल्म " लवकुश " में लक्ष्मण के किरदार में।

            -1992 में निर्माता गुलशन कुमार की पौराणिक फिल्म "शिवमहिमा" में अरुण गोविल ने भगवान् शिवजी का किरदार निभाया था, उनके साथ माता पार्वती के किरदार में अभिनेत्री किरण जुनेजा नजर आयी थीं।

           -1995 में निर्देशक दासरि नारायण राव की टेलीविजन शृंखला "विश्वामित्र" में अरुण गोविल ने राजा हरिश्चन्द्र का किरदार निभाया था।

          -1997 में निर्माता दिलीप कनिकारिआ एवं वी. मधुसूदन राव द्वारा निर्देशित फिल्म "लवकुश" में अरुण गोविल ने लक्ष्मण का किरदार निभाया था, राम के किरदार में डांसिंग स्टाइल के माहिर अभिनेता जीतेन्द्र थे तो सीता माता की भूमिका में अभिनेत्री जयाप्रदा थी।   

                                                   

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श्रीलेखा गोविल अरुण गोविल और उनका पुत्र अमल गोविल

विवाह एवं परिवार : -

               अरुण गोविल ने अभिनेत्री श्रीलेखा से विवाह कर लिया। बॉलीवुड में पदार्पण करने से पहले श्रीलेखा गोविल फैशन डिजाइनर थी। उनकी चर्चित फिल्मों में "आई पाहिजे [1988]" , "हिम्मतवार [1996] और" छोटा-सा घर [1996] " है। गोविल दंपत्ति को दो संताने है। बेटी सोनिका गोविल और बेटा अमल गोविल। दोनों अपने आप को लाइमलाइट से दूर रखते है।     प्रूफ पूरा

अरुण गोविल की कुछ फ़िल्में:-


             फिल्म "गंगा धाम [1980]" , "इतनी-सी बात [1981]" , "गुमसुम [1981]" , "ससुराल [1982]" , "लाल चुनरिया" , "कालका" और "हिम्मतवाला [1985]" , "देवर भाभी" , "युद्ध" , "दिलवाला" , "नफरत" , "प्यारी दुल्हनिया" , "मुकाबला" , "हथकड़ी" , "दो आँखे बारह हाथ" , "बाबुल प्यारे" , "हे भगवान 2" और "अनुच्छेद 370" जैसी अनेक फिल्मों में अरुण गोविल ने भूमिका निभाई है।

टेलीविजन धारावाहिक :-


          "फूलवन्ती" 1992, "मशाल" 1994, "आशिकी" 1998, "पाल छीन" 1999, "बसेरा" 2000, "कैसे कहूँ" 2001, "साँझी" 2002, "अहसास-कहानी एक घर की" 2003 और "गायत्री महिमा" 2003.

पुरस्कार एवं सम्मान:-

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                  अरुण गोविल अपने करियर के अतिरिक्त विभिन्न सामजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रीय रूप से हिस्सा लेते है।

              उनका प्रभाव स्क्रीन से परे फैला हुआ है। कारण अरुण गोविल अपने द्वारा निभाय गए प्रतिष्ठित चरित्र से जुड़े मूल्यों तथा सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से दर्शकों को प्रेरित करते रहते है।