विनोद खन्ना: लग्जरी लाइफ छोड़ बने थे संन्यासी
विनोद खन्ना: लग्जरी लाइफ छोड़ बने थे संन्यासी |
विनोद खन्ना भारतीय हिंदी सिनेमा के एक ऐसे अद्वितीय अभिनेता थे, जिनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व ने उन्हें बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय और सन्मानित सितारों में शामिल किया था। उनकी फिल्मी यात्रा केवल एक अभिनेता के रूप में नहीं रही, बल्कि विनोद खन्ना ने राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका जीवन संघर्ष, सफलता और समर्पण का प्रतीक है।
विनोद खन्ना आज भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के हैंडसम अभिनेताओं में गिने जाते थे। उनका अंदाज़ जितना फिल्मों में अलग था, उतना ही वे वास्तविक जीवन में भी निराले थे। विनोद खन्ना ने स्वयं को केवल एक अभिनेता और फ़िल्मी दुनिया के दायरे में नहीं समेटा, बल्कि जिंदगी के हर रंग में जिया है। वे अन्य फ़िल्मी सितारों से एकदम अलग थे। विनोद खन्ना, जिंदगी को दौलत, शोहरत और रुतबे से कहीं आगे देखा करते थे।
जन्म एवं शिक्षा : -
विनोद खन्ना बचपन, जवानी और बुढ़ापे में ऐसे नजर आते थे। | |
जन्म एवं शिक्षा : -
विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 को पेशावर [ पाकिस्तान] में किशनचंद खन्ना और माता कमला के घर हुआ था। विभाजन के पश्चात उनका परिवार मुंबई आ गया था। 1960 के बाद की विनोद खन्ना की स्कूली शिक्षा नासिक बोर्डिंग स्कूल में हुई थी। वहीं उन्होंने सिद्धेहम कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
उनका बचपन से ही फिल्मों की ओर झुकाव था, लेकिन पिता विनोद खन्ना को एक उद्योगपति बनाना चाहते थे। हालांकि, विनोद खन्ना अभिनय दुनिया में कदम रखने सपना उन्हें मुंबई की फ़िल्मी दुनिया म खींच लाया।
विनोद खन्ना की पहली फिल्म का पोस्टर |
फ़िल्मी करियर की शुरुवात :-
विनोद खन्ना ने अपने करियर की शुरुवात 1968 में निर्माता - अभिनेता सुनील दत्त की फिल्म " मन का मीत " से की। इस फिल्म को ऐ. सुब्बाराव ने निर्देशित किया जिसमे, अभिनेत्री लीना चंदावरकर नायिका थी। इनके आलावा जीवन, ओमप्रकाश जैसे मंझे हुए कलाकार थे। विनोद खन्ना ने इस फिल्म में एक खलनायक की भूमिका निभाई थी।
विनोद खन्ना की अदाकारी ने दर्शकों का दिल जीत लिया। शुरुवाती दौर में उन्होंने कई फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाई, जिनमे से फिल्म " पूरब और पश्चिम ", " आन मिलो सजना " और फिल्म " मेरा गांव, मेरा देश " प्रमुख थी।
विनोद खन्ना को पहचान दिलाने वाली फिल्म "मेरे अपने " का पोस्टर |
हालांकि, विनोद खन्ना को असली पहचान मिली 1971 में आयी फिल्म " मेरे अपने " से, जिसका निर्देशन गुलजार ने किया था। इस फिल्म को निर्माता एन. सी. सिप्पी थे। इस फिल्म में नायिका के रूप में ट्रेजेडी क्वीन मीणा कुमारी थी। इनके आलावा शॉटगन के नाम से जानेजाने वाले अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की भी भूमिका थी।
विनोद खन्ना ने 1970 और 1980 के दशक में हिंदी सिनेमा के बड़े स्टार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में " अमर अकबर अन्थोनी ", " कुर्बानी ", '' हथियार ", " दयावान " और " चांदनी " शामिल है। वह अपने समय के सबसे चर्चित और सफल अभिनेताओं में से एक थे। उनके अभिनय को न केवल दर्शकों बल्कि आलोचकों ने भी सराहा।
विनोद खन्ना के अभिनय की सबसे बड़ी खासियत उनकी गंभीरता, गहरी आवाज और उनके किरदारों में भावनाओ की गहराई थी। चाहे वह रोमांटिक हो, एक्शन हीरो या भावनात्मक किरदार, विनोद खन्ना ने हर भूमिका को बखूबी निभाया है।
अध्यात्म की ओर : -
1980 के दशक में, विनोद खन्ना ने अचानक फ़िल्मी दुनिया से दुरी बना ली और ओशो रजनीश के आश्रम में संन्यास ले लिया। उन्होंने अपने सफल करियर के बीच में ही अध्यात्म की ओर रुख किया और कुछ वर्षों तक पुणे में ओशो के आश्रम में रहे। इस दौरान उन्होंने फिल्मों से ब्रेक लिया, जिससे उनके प्रशंसकों और फ़िल्मी दुनिया में हलचल मच गयी। हालांकि, कुछ समय बाद उन्होंने वापसी की और फिर से फिल्मों में सक्रिय हो गए।
फिल्मों में वापसी : -
विनोद खन्ना की धमाकेदार वापसी की फिल्म " इन्साफ " का पोस्टर |
विनोद खन्ना ने 1987 में फिल्म " इन्साफ " के साथ बॉलीवुड में धमाकेदार वापसी की।उनकी वापसी को दर्शकों ने खुले दिल से स्वीकार किया और इसके बाद उन्होंने कई हिट फ़िल्में दी। वह अपने समय के सबसे बड़े सितारों में से एक बने रहे और उनकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया।
उनकी वापसी के बाद की फिल्मों में " दयावान ", "सच्चा झूठा ", " चांदनी " और " खुदा गवाह " प्रमुख थी। विनोद खन्ना ने अपने पुरे करियर में 100 से अधिक फिल्मों में काम किया और हम फिल्म में उन्होंने अपनी अदाकारी से लोगों का दिल जीता।
राजनीतिक जीवन : -
विनोद खन्ना का जीवन सिर्फ फ़िल्मी दुनिया तक सिमित नहीं था। उन्होंने राजनीति में भी सक्रीय रूप से हिस्सा लिया था। 1977 में, वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और 1998 में पहली बार गुरदासपुर से लोकसभा सांसद चुने गए। वे चार बार सांसद रहे और राजनीति में भी उनकी लोकप्रियता कायम रही।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्होंने संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री और फिर विदेश मामलों के राज्यमंत्री के रूप में कार्य किया। विनोद खन्ना राजनीति में भी एक सशक्त और प्रभावशाली नेता के रूप में जाने जाते थे।
व्यक्तिगत जीवन : -
विनोद खन्ना का व्यक्तिगत जीवन भी काफी दिलचस्प रहा। उनका पहला विवाह गीतांजलि से हुआ था, जिनसे उनके दो बेटे - अक्षय खन्ना और राहुल खन्ना है। वे खुद भी अभिनेता है। हालांकि, यह विवाह अधिक समय तक नहीं चला। बाद में उन्होंने कविता से विवाह किया। जिनसे उन्हें एक बीटा साक्षी और एक बेटी श्रद्धा है।
विनोद खन्ना का परिवार हमेशा उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उनके बेटे अक्षय ने भी बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई और वे अपने पिता के नक़्शेकदम पर चले।
निधन : -
विनोद खन्ना का निधन कैंसर के कारण मुंबई स्थित गिरगांव के श्री हेच. एन. रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेण्टर में 27 अप्रैल 2017 को सवेरे 11.20 बजे हुआ। उसी दिन वर्ली क्रेमेंटोरियम में अंतिम संस्कार किया गया।
उनके निधन के समाचार से पुरे फिल्म उद्योग और उनके प्रशंसकों को गहरा धक्का लगा। विनोद खन्ना न केवल एक महान अभिनेता थे, बल्कि एक अद्वितीय व्यक्तित्व के धनि भी थे। उनके अभिनय की शैली, उनकी जीवन यात्रा हमेशा लोगों के दिलों में जिन्दा रहेंगी।
विनोद खन्ना के निधन पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने अपने शोक सन्देश में कहा --------
फिल्मोंग्राफी : -
विनोद खन्ना की कुछ चुनिंदा फ़िल्में यहां दे रहे है, जिन्होंने काफी लोकप्रियता हासिल की थी। जिनमे ---------
"आन मिलो सजना " [1970], " जाने अनजाने " [1971], " एलान " [1971], " रेशमा और शेरा "[1971], " दोस्त और दुश्मन ", " परिचय " [1972], " अनुराग " [1972], " प्यार का रिश्ता " [1973], " अनोखी अदा " [1973] " इम्तिहान " [1974], " पत्थर और पायल " [1974], " हाथ की सफाई " [1974], " ज़मीर " [1975], " हेरा फेरी " [1976], " नहले पे दहला " [1976], " खून पसीना ", " अमर अकबर अन्थोनी ", " परवरिश ", " इंकार [1977], " मैं तुलसी तेरे आंगनकी ", " मुक़दर का सिकंदर " [1978], " लहू के दो रंग " [1979], " चांदनी " [1989]" इन फिल्मों के आलावा कई अन्य फ़िल्में उनकी फेहरिस्त में दर्ज है।
पुरस्कार एवं सम्मान : -
1] 1975 – हाथ की सफ़ाई के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार।
2] 1999 - फ़िल्मफ़ेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार।
3] 2005 - स्टारडस्ट अवार्ड्स - वर्ष के लिए रोल मॉडल।
4] 2007 - लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए ज़ी सिने अवार्ड।
5] 2017 - दादा साहेब फाल्के पुरस्कार [ मरणोपरांत ]
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 3 मई 2018 को 65 वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में विनोद खन्ना को मरणोपरांत सन्मानित करते हुए विनोद खन्ना की पत्नी और बेटा अक्षय खन्ना देखे जा सकते है। |
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