शहनाई के जादूगर बिस्मिल्लाह खान |
बिस्मिल्ला खान [Bismillah khan] की विरासत न केवल उनके संगीत में, बल्कि लाखों लोगों के दिलों में आज भी जीवित है, जो उनकी प्रतिभा और उनकी मान्यता से प्रभावित थी। बिस्मिल्ला खान एक सच्चे उस्ताद, परंपरा और नवीनता के बीच एक सेतु और संगीत की एकीकृत शक्ति के प्रमाण थे।
उस्ताद बिस्मिल्ला खान एक संगीतकार ही नहीं थे, वे भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेषकर शहनाई कला के प्रतीक थे। उनका नाम शहनाई वाद्ययंत्र का पर्याय बना है और उनके शहनाई संगीत ने सात दशकों से अधिक समय से दुनियाभर के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था।
जन्म : -
बिस्मिल्ला खान का वास्तविक नाम कमरुद्दीन खान था। उनका जन्म 21 मार्च 1916 में बिहार स्थित डुमराव के टेढ़ी बाज़ार निवासी पैगम्बर खान और मिट्ठनबाई दंपत्ति के घर हुआ था। बिस्मिल्ला के पिता पैगम्बर खान डुमराव के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के राज दरबार में शहनाई बजाया करते थे।
प्रारंभिक शिक्षा :-
बिस्मिल्ला खान जब मात्र 6 वर्ष के थे, तब वे वाराणसी गए थे। वाराणसी में उनके चाचा अली बक्श 'विलायतु' ने उन्हें शहनाई की प्रारंभिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया। युवा बिस्मिल्ला ने अपने चाचा को ही गुरु माना और शहनाई वाद्य बजाने की बारीकियाँ सीखी थी।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान |
प्रारम्भ में अपनी कला का प्रदर्शन मंदिरों और धार्मिक कार्यक्रमों में करते थे। हालांकि, उनकी प्रतिभा ने जल्द ही दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था।
प्रथम व्यापक संगीत कार्यक्रम:-
उस्ताद बिस्मिल्ला खान को व्यापक स्तर पर अपना एक संगीत कार्यक्रम पेश करने का अवसर 1937 में कोलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय संगीत सम्मलेन था। इस संगीत सम्मलेन में अपने शहनाई के प्रदर्शन से बिस्मिल्ला खान सुर्ख़ियों में आ गए। माना जाता है कि उनका यह प्रथम व्यापक शहनाई संगीत कार्यक्रम था।
बिस्मिल्ला खान शहनाई बजाते हुए |
विवाह : -
बिस्मिल्ला खान का विवाह मात्र 16 वर्ष की आयु में उनके मामा सादिक अली की द्वितीय पुत्री मुग्गन खानम के साथ हुआ था। आगे चलकर इस दंपत्ति को नौ संताने हुई।
उस्ताद बिस्मिल्ला खान अपनी पत्नी मुग्गन खानम से बेहद प्रेम करते थे। उनका भरापूरा परिवार था, जिस परिवार में कुल 66 सदस्य थे। बिस्मिल्ला खान कई बार व्यंग कसते हुए अपने घर को होटल कहा करते थे।
1947 में लाल किले पर शहनाई कार्यक्रम करते हुए। | |
लाल किले से शहनाई : -
1947 में उस्ताद बिस्मिल्ला खान को भारत की स्वतंत्रता के अवसर पर लाल किले पर प्रदर्शन करने के लिए चुना गया था, वह एक ऐसा क्षण था जिसने देश की सांस्कृतिक चेतना में उनकी जगह पक्की कर दी थी।
इन वर्षों में उनकी प्रसिद्धि भारत से बाहर भी फैल गई थी। बिस्मिल्ला खान ने बड़े पैमाने पर यूरोप, उत्तरी अमेरिका, ईरान, पश्चिम अफ्रीका, बांग्लादेश, जापान और हांगकांग जैसे देशों में शहनाई का प्रदर्शन किया और भारतीय संगीत से परिचित कराया। उस्ताद बिस्मिल्ला खान के सभी संगीत कार्यक्रम मंत्रमुग्ध कर देनेवाले और भावनात्मक गहराई से भरे हुए रहते थे।
कलाकार ही नहीं एक अविष्कारक : -
बिस्मिल्ला खान न केवल एक कलाकार थे, बल्कि एक शिक्षक और प्रवर्तक भी थे। उन्होंने कई नए रागों की रचना की और शहनाई के प्रदर्शन का विस्तार भी किया था।
वे संगीत की सांस्कृतिक और धार्मिक सीमाओं को पार करने की शक्ति में भी विश्वास करते थे और उनका संगीत कलात्मक भिव्यक्ति के सभी रूपों के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाता था।
बिस्मिल्ला खान हमेशा ही हिन्दू-मुस्लिम की एकता में विश्वास रखते थे। वे अपने संगीत के माध्यम से भाईचारे का सन्देश फैलाया करते थे। बिस्मिल्ला खान एक शिया मुसलमान होने के बावजूद माता सरस्वती देवी की पूजा भी करते थे।
युवा बिस्मिल्ला खान |
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