कोरोना ने जब से हमारे देश में दस्तक दी है और अपना तांडव मचा रखा है। इस कोरोना से लड़ने हमने भी अपनी कमर कस ली है। 
             देश भर में लॉकडाउन हो गया।  इस भयंकर वायरस से बचने के लिए हमने अपने आपको अपने ही घरों में कैद कर लिया है।  28 मार्च से घोषित लॉकडाउन से अब हम ऊब रहें है। प्रतिदिन अपने परिवार के साथ रहते हुए नए नए रेसिपियों का लुफ्त उठाकर अपने शरीर का वजन बढ़ा रहें है। 

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                  इसके लिए हमें थोड़ी बहुत कसरत या योगासन करने की भी सलाह मिलती रहती है और हम अपना फिटनेस कायम रखने इस पर अमल भी कर रहें है। खाली समय में पढ़ने के लिए किताबें खोजी तो उसमे मुद्रा विज्ञान का रहस्य सामने आया। तभी मैंने इस विज्ञान का लाभ औरों को भी मिलें और लॉकडाउन के समय को बेहतर बनाने वह जानकारी सभी से शेयर कर रहा हूँ। 

   मुद्रा विज्ञान : -

       मुद्रा विज्ञान किसी भी शारीरिक विकार को ठीक करने के लिए अग्नि , वायु  , ईथर , पृथ्वी और पानी के रूप में नामित पांच तत्वों का प्रतिक पांच उँगलियों का उपयोग कर विशिष्ट मुद्रा प्राप्त करने के विज्ञान को दर्शाता है  हम सब जानते है कि हमारा यह शरीर इन्ही पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ है। इन पंचतत्वों में असंतुलन पैदा होने से रोगों की उत्पत्ति हो जाती है। उंगलियों की सहायता से हम विभिन्न मुद्राओं द्वारा इन पंचतत्वों को संतुलित कर स्वास्थ रक्षा एवं रोग निवारण किया कर सकते है। ये मुद्राएं अपने दोनों हाथों से करनी चाहिए। यहाँ पर मुद्राओं के चित्रों  द्वारा कौन सी मुद्रा से क्या लाभ होता है , यह जानेगें  -

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पंचतत्वों की प्रतीक उंगलियां  

                                                       

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ज्ञान मुद्रा

 ज्ञान मुद्रा - इस मुद्रा द्वारा एकाग्रता , स्मरणशक्ति , मानसिक शक्ति बढती है। इसके आलावा क्रोध शांत होता है और अनिद्रा दूर होती है। इसे प्रतिदिन ३० - ४५ मिनिट करना चाहिए। 
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आकाश मुद्रा

आकाश मुद्रा : - इस मुद्रा द्वारा कानों की सुनने की शक्ति बढती है। उच्च रक्तचाप में लाभ मिलता इस मुद्रा को प्रतिदिन ३० मिनिट करना चाहिए।                                                            
                                                         
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पृथ्वी मुद्रा
पृथ्वी मुद्रा : - इस मुद्रा से शरीर की हड्डियाँ तथा मांसपेशियाँ मजबूत होती है। विटामिन की कमी दूर होती है। इस मुद्रा को प्रतिदिन २० मिनिट करना चाहिए। 
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इन्द्र मुद्रा

             
इंद्र मुद्रा : - इस मुद्रा से चर्म रोगों में लाभकारी , दस्त होने पर डिहाइड्रेशन  नहीं होता। लघु शंका बार - बार नहीं जाना पड़ता। इस मुद्रा को प्रतिदिन ३० मिनिट करने से लाभ मिलता है।                                        
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वायु मुद्रा

   
  वायु मुद्रा : - इस मुद्रा द्वारा घुटनो एवं   शरीर में कहीं भी दर्द में लाभ होता है। रुक - रुक कर डकार में भी लाभ के आलावा सर्वाइकल , दर्द , गठिया ,एड़ी के दर्द और ह्रदय की पीड़ा में भी उपयोगी है। इस मुद्रा को प्रतिदिन ३० - ४५ मिनिट करना चाहिए।
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शून्य मुद्रा

 शुन्य मुद्रा : - इस मुद्रा से शरीर में कहीं भी सुन्नपन , कानो में बहरापन , कान बहता हो या कानो में मैल जमा है तो लाभकारी , कानो में सायं सायं की आवाज में भी लाभ होता है। इस मुद्रा को प्रतिदिन 30 - 45 मिनिट नित्य करना चाहिए।
                                             
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सूर्य मुद्रा
              
सूर्य मुद्रा : -  इस मुद्रा द्वारा सर्दी जुकाम में लाभकारी ,मोटापा घटाया जा सकता है। कोलेस्ट्रॉल कम करती है और मोतियाबिंद कम होता है। इस मुद्रा को नित्य १५ - १५ मिनिट दिन में दो बार करना चाहिए। 
         
                                                                             
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वरुण मुद्रा

वरुण मुद्रा :यह मुद्रा शरीर की सूजन कम करती है। पेट में पानी [ जलोदर ] में लाभकारी , साइनस , हाथी पांव में भी लाभ मिलता है। इसे प्रतिदिन ३० - ४५ मिनिट करना चाहिए।
                                               
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प्राण मुद्रा


  प्राण मुद्रा : - इस मुद्रा से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढती है। दुर्बलता कम होती है , जीवनी शक्ति बढती है। नेत्र ज्योति बढ़ती है , दृष्टी दोष भी दूर होता है। इसके आलावा रक्तवाहिनी की रुकावटें दूर होती है। लकवे की कमजोरी दूर होती है। सभी प्रकार के फ्लू , स्वाइन फ्लू ,डेंगू में भी लाभदायक है। इसे प्रतिदिन ३० - ४५ मिनिट करना चाहिए।  

                                                                                 
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अपान मुद्रा
    
अपान मुद्रा : - यह मुद्रा नाभि से नीचे के सभी अवयवों पेट , नाभि , गुदा ,गुप्तांग , घुटना , पिंडली , जंघाएँ , पैर आदि सभी अंगों से सम्बंधित सभी रोगों का उपचार करती है। पसीना आने की क्रिया सुधारती है , पैरों की जलन ठीक होती है। जी मिचलाना , हिचकी , उल्टी एवं दस्त में लाभकारी है। उच्च रक्तचाप , मधुमेह , गुर्दे एवं साँस के रोगों में भी लाभ मिलता है।  इसके अलावा गर्भावस्था के सात से नौ माह के बीच नित्य करने से प्रसव सामान्य एवं शिशु स्वस्थ होता है।  इस मुद्रा को नित्य ३० - ४५ मिनिट करना चाहिए। 
                                           
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व्यान मुद्रा

व्यान मुद्रा : -  इस मुद्रा से उच्च रक्तचाप एवं लो रक्तचाप दोनों में लाभकारी है। ह्रदय रोग में भी लाभकारी है। अचानक रक्तचाप बढ़ने या घटने में भी लाभदायक है। वात , पित्त ,कफ का संतुलन ठीक होता है। इस मुद्रा को नित्य ३० - ४५ मिनिट करना चाहिए। 
                                              
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उदान मुद्रा

उदान मुद्रा : - इस मुद्रा से थायरॉड सम्बन्धी रोगों में हायपर / हायपो दोनों में लाभकारी है। स्मरण शक्ति बढती है।  इसे प्रतिदिन १५ - ३० मिनिट करना चाहिए
                                                  
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समान मुद्रा


समान मुद्रा : - इस मुद्रा द्वारा तन ,मन , बुद्धि में समन्वय होने से मन प्रसन्न रहता है। संकल्प शक्ति बढती है। इस मुद्रा को प्रतिदिन ५ - ५ मिनिट दिन में ५ बार करना चाहिए।